Mirza Ghalib Shayari in Hindi

Mirza Ghalib Shayari in Hindi

Mirza Ghalib Shayari in Hindi: मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू शायरी के उन महान कवियों में से एक हैं जिन्होंने अपनी शायरी के माध्यम से समय की गहराईयों तक छू लिया। उनकी कविताएँ और शायरी अद्वितीय हैं, जो न केवल उनके जीवन का प्रतिबिंबित करती हैं, बल्कि उनके समय के सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश को भी दर्शाती हैं। Mirza Ghalib Shayari में उनकी भावनाओं की गहराई, उनके संवेदनशील दृष्टिकोण और उनके जीवन की विचारधारा स्पष्ट रूप से प्रकट होती है।

Mirza Ghalib Shayari में उनकी अद्वितीय शैली और व्यक्तिगत दुख-सुख की कहानी छिपी होती है। Mirza Ghalib Shayari आज भी उसी मधुरता और गंभीरता से पढ़ी जाती हैं, जो उन्होंने उनके समय में लिखी थीं। Mirza Ghalib Shayari में उनका प्रेम, इश्क़, और जीवन के मुद्दों पर उनकी दृष्टि आज भी सशक्त है। उनके शेर और ग़ज़लें हर दिल को छू जाती हैं और उनकी सरल भाषा में गहरी बातों को व्यक्त करने की कला ने उन्हें हर दिल अज़ीज़ बना दिया है।

Mirza Ghalib Shayari में उन्होंने ज़िंदगी के दर्द, मोहब्बत की मासूमियत और समाज की जटिलताओं को अनूठे अंदाज़ में पिरोया है। Mirza Ghalib Shayari उनके जीवन के हर पहलू को बारीकी से उजागर करती है, चाहे वह उनके दिल का दर्द हो या उनके इश्क़ की खुमारी। अगर आप भी Alfaaz Shayari, Dard Bhari Bewafa Shayari और Hindi Status में रुचि रखते हैं, तो हमारी वेबसाइट FunkyLife पर और भी पढ़ सकते हैं।हैं।

Mirza Ghalib Shayari in Hindi

Mirza Ghalib Shayari in Hindi

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
ल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है.

ग़ालिब की शायरी हिंदी में 2 Line

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.

Hindi Mirza Ghalib Shayari

हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक.

Best Ghalib Shayari

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मुयस्सर नहीं इंसाँ होना.

Urdu Shayari on Life by Ghalib

मैं नादान था, जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब,
यह न सोचा के एक दिन, अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी।
मिर्जा गालिब।

Ghalib Shayari on Life

क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन

मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।।

Ghalib Love Shayari

आ ही जाता वो राह पर गालिब
कोई दिन और भी जिए होते.

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता.

उनके देखे से, जो आ जाती है मुँह पर रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा हैं

जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब
ज़ख्म का एहसास तब हुआ
जब कमान देखी अपनों के हाथ में।

Mirza Ghalib Sad Shayari

तेरे वादे पर जिये हम
तो यह जान,झूठ जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते
अगर एतबार होता.

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है

ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले.

बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं ‘ग़ालिब’
कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है.

रखते हैं हम उन्हें निगाहों की हद में हमेशा जैसे
खिदमतगारी इश्क में बनी नज़रों की पहरेदारी

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है.

ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री ‘ग़ालिब’
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे.

करने गए थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला
की एक ही निगाह कि बस ख़ाक हो गए.

Heart Touching Mirza Ghalib Shayari

Heart Touching Mirza Ghalib Shayari

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं.

सादगी पर उस के मर जाने की हसरत दिल में है,
बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है।

रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं.

मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती.

जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए.

बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब,
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है।

हां वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही
जिस को हो दीन ओ दिल अज़ीज़ उस की गली में जाए क्यूँ.

नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने,
क्या बने बात जहाँ बात बताए न बने!

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Mirza Ghalib Ki Shayari

Mirza Ghalib Ki Shayari

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे.

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ .

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता.

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता!

कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज,
पर इतना जानते है कल वो जाता था के हम निकले!

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था.

Mirza Ghalib Love Shayari

Mirza Ghalib Love Shayari

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है!

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.

सिसकियाँ लेता है वजूद मेरा गालिब,
नोंच नोंच कर खा गई तेरी याद मुझे।

हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक.

मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले!

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती.

मरते है आरज़ू में मरने की,
मौत आती है पर नही आती,
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुमको मगर नही आती!

Mirza Ghalib Shayari in English

Mirza Ghalib Sad Shayari

Mirza Ghalib Sad Shayari

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता.

ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री,
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे।

तू ने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’
तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है!

रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’
कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था

पूछते हैं वो कि ‘ग़ालिब’ कौन है
कोई बतलाओ कि हम बतलाएँ क्या.

मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती.

देखिए लाती है उस शोख़ की नख़वत क्या रंग,
उस की हर बात पे हम नाम-ए-ख़ुदा कहते हैं!

इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही,
मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही!

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीम-कश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।

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Dard Mirza Ghalib Shayari

Dard Mirza Ghalib Shayari

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे.

मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या-रब कई दिए होते.

ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका,
गर इक अदा हो तो उसे अपनी क़ज़ा कहूँ!

देखो तो दिल फ़रेबि-ए-अंदाज़-ए-नक़्श-ए-पा,
मौज-ए-ख़िराम-ए-यार भी क्या गुल कतर गई !

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ.

कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है,
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता!

Ghalib Mirza Shayari

Ghalib Mirza Shayari

इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई,
मेरे दुख की दवा करे कोई!

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने.

हालत कह रहे है मुलाकात मुमकिन नहीं,
उम्मीद कह रही है थोड़ा इंतज़ार कर।

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और

कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी.

वो आए घर में हमारे खुदा की कुदरत है,
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं!

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है.

इनकार की सी लज़्ज़त इक़रार में कहाँ,
होता है इश्क़ ग़ालिब उनकी नहीं नहीं से!

न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही,
इम्तिहाँ और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही!

Mirza Ghalib Shayari on Life

Mirza Ghalib Shayari on Life

ख़ार ख़ार-ए-अलम-ए-हसरत-ए-दीदार तो है,
शौक़ गुल-चीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली न सही!

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना.

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने!

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक.

काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुम को मगर नहीं आती.

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने!

हो चुकीं ‘ग़ालिब’ बलाएँ सब तमाम,
एक मर्ग-ए-ना-गहानी और है!

फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर वही ज़िंदगी हमारी है.

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Mirza Ghalib Shayari in Urdu

Mirza Ghalib Shayari in Urdu

वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं.

हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।

इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया.

मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल,
उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने!

आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती.

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक!

ग़ालिब ने यह कह कर तोड़ दी तस्बीह,
गिनकर क्यों नाम लू उसका जो बेहिसाब देता है।

कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता.

कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
हम को जीने की भी उम्मीद नहीं

तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता।

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रँग करूँ खून-ए-जिगर होने तक!

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Conclusion

इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से हमने Mirza Ghalib Shayari के अनेक पहलुओं को समझा। उनकी शायरी में गहराई, उनकी विचारधारा में विशेषता, और उनके व्यक्तित्व में अद्वितीयता का परिचय इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से प्राप्त हुआ। ग़ालिब की शायरी न केवल उनके समय का प्रतीक है, बल्कि आज भी उसका महत्व और गंभीरता बनी रहती है।

इस ब्लॉग पोस्ट से, हमने देखा कि Mirza Ghalib Shayari का योगदान उर्दू साहित्य में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनकी कविताएँ हमें अपनी ज़िंदगी के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए प्रेरित करती हैं और हमें उनके समय की समाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं का भी अध्ययन करने का मौका देती हैं।

Mirza Ghalib Shayari में उन्होंने जिन संवेदनशील मुद्दों को उठाया, वह आज भी प्रासंगिक हैं और हमें सोचने पर मजबूर करते हैं। उनके शेर और ग़ज़लें हमें ज़िंदगी के हर पहलू से जोड़ती हैं और हमें अपने भावनाओं को व्यक्त करने का एक नया दृष्टिकोण देती हैं। Mirza Ghalib Shayari के शायराना कलम से लिखी गई ये अनमोल विचार और भावनाएँ हमें हमेशा प्रेरित करती रहेंगी।

ग़ालिब की शायरी से हमें यह समझ में आता है कि शायरी सिर्फ़ शब्दों का खेल नहीं, बल्कि भावनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। अगर आप भी शायरी के दीवाने हैं और लव शायरी, सैड शायरी जैसी शायरियों को पढ़ना पसंद करते हैं, तो हमारी वेबसाइट पर और भी बेहतरीन शायरी का आनंद ले सकते हैं।

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